जल प्रदूषण आज एक वैश्विक चिंता का विषय है क्योंकि जल प्रदूषण के कारण संपूर्ण विश्व में कई प्रकार की बीमारियां निरंतर अपना पैर पसार रही हैं। जल प्रदूषण के कारण उत्पन्न इन बीमारियों से बहुत से लोगों की मौत भी हो रही है। एक जानकारी के अनुसार जल प्रदूषण के कारण प्रतिदिन लगभग 14000 लोगों की मौत हो रही है जिसमें 580 लोग भारत के हैं। बड़े-बड़े शहरों में जल का उपयोग बहुत अधिक मात्रा में होता है। उपयोग के बाद यह अपशिष्ट जल सीवरों एवं नालियों के माध्यम से जल स्रोतों में गिराया जाता है। जो जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। इन जल अपशिष्टों में विषैले रासायनिक एवं कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो जल को प्रदूषित कर देते हैं और अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। आज इस लेख में हम jal pradushan, jal pradushan pr nibandh, essay on water pollution in hindi एवं Jal pradushan ke karak और jal pradushan rokane ke upay आदि विषयों में विस्तार से देखेंगे।
जल प्रदूषण
Water Pollution
जल प्रदूषण से अभिप्राय जल निकायों जैसे कि तालाबों, झीलों, नदियों, समुद्रों और भूजल के प्राकृतिक रूप में कुछ अनावश्यक तत्वों के मिश्रण से जल के संदूषित होने से है। प्रदूषित जल इन जल निकायों के पादपों, जीवों को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण जैविक तंत्र को प्रभावित करता है। jal pradushan
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जल प्रदूषण के कारण
Causes of Water Pollution
जल प्रदूषण के कारणों को मुख्यतः दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
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1. प्राकृतिक कारण
2. मानवीय कारण
जल प्रदूषण के प्राकृतिक कारण
प्राकृतिक रूप से जल प्रदूषण भूक्षरण, पौधों की पत्तियों, ह्यूमस पदार्थ एवं प्राणियों के मल-मूत्र आदि जल में मिलने के कारण होता है। हवा में उपस्थित गैसों और धूल के कणों का वर्षा जल में मिलने से वर्षा जल प्रदूषित जाता है। इसके अलावा ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा भी प्राकृतिक जल प्रदूषण का प्रमुख कारण है।
जल प्रदूषण के मानवीय कारण
मनुष्य अपनी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से अनेक अपशिष्ट पदार्थों को जल स्रोतों में विसर्जित करता रहता है।और यही जल प्रदूषण का कारण बनता है। इन्हें हम कुछ निम्न भागों में बांट सकते हैं। 1. घरेलू बहिःस्राव, 2.औद्योगिक अपशिष्ट बहिःस्राव, 3. कृषि बहिःस्राव, 4. उष्मीय या तापीय रेक्टरों के कारण जल प्रदूषण, 5. तेल रिसाव, 6. रेडियोएक्टिव अपशिष्ट से जल प्रदूषण इत्यादि। jal pradushan
1. घरेलू बहिःस्राव :
विभिन्न घरेलू अपशिष्ट domestic waste जो कि दैनिक घरेलू कार्यों जैसे; खाना पकाने, स्नान करने, कपड़ा धोने, सफाई कार्य इत्यादि से निकलते हैं जल प्रदूषण के कारण बनते हैं। क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के हानिकारक रासायनिक पदार्थ होते हैं। ये घरेलू अपशिष्ट नालियों से बहकर जलश्रोतों में मिलते हैं और जल को प्रदूषित करते हैं। आधुनिक युग में सफाई के कार्यों में प्रयुक्त संश्लेषित प्रक्षालक जलस्रोतों में मिलकर जल को स्थाई रूप से प्रदूषित कर रहे हैं।
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2.औद्योगिक अपशिष्ट बहिःस्राव :
उद्योग धंधों से निकलने वाला अपशिष्ट जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। लुग्दी एवं कागज उद्योग, चीनी उद्योग, चमड़ा उद्योग, वस्त्र उद्योग, शराब उद्योग, औषधि निर्माण उद्योग, रासायनिक उद्योग इत्यादि से बहुत ही अधिक मात्रा में अपशिष्ट निकलते है। ये अपशिष्ट नालियों एवं सीवरों के माध्यम से बहकर नदियों गिरते हैं। इन अपशिष्टों में अनेक तरह के अम्ल, क्षार, लवण, तेल, वसा, आर्सेनिक, सायनाइड, पारा, सीसा, ताम्बा, लोहा, इत्यादि विषैले रासायनिक पदार्थ विद्यमान रहते हैं जो जल में मिलकर जल को विषैला एवं प्रदूषित बनाते हैं। विश्व भर में नदियों के जल प्रदूषण में औद्योगिक अपशिष्ट बहिःस्राव प्रमुख कारण है। क्योंकि ये हानिकारक औद्योगिक अपशिष्ट बिना संशोधित किये मुख्यतः नदियों में फेंके जाते हैं। भारत में गंगा एवं यमुना जैसी पवित्र नदियां औद्योगिक अपशिष्ट बहिःस्राव के कारण ही सबसे अधिक प्रदूषित हैं।
3. कृषि बहिःस्राव :
आधुनिक युग में कृषि उत्पादन में वृद्धि कृषि की नई-नई पद्धतियों एवं रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से संभव हुआ है। ये रासायनिक उर्वरक एक ओर जहाँ कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए सहायक हैं वही दूसरे ओर जल प्रदूषण के साथ -साथ कई प्रकार के जानलेवा बीमारियों के लिए भी उत्तरदायी हैं। सिचाईं के लिए अतिशय भूजल का दोहन एवं रासायनिक उर्वरकों के साथ- कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से भूजल के प्रदूषण स्तर में दिनों दिन वृद्धि हो रही है।
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4. उष्मीय या तापीय रेक्टरों के कारण जल प्रदूषण
विभिन्न उत्पादक संयंत्रों एवं रिएक्टरों के अति उष्मीय प्रभाव को शीतलतन की प्रक्रिया के माध्यम से निवारित किया जाता है। इस निवारण के लिए नदी एवं तालाबों के जल का उपयोग किया जाता है। शीतलतन की प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप गर्म हुआ यह जल पुनः जल स्रोतों में गिराया जाता है इस तरह के जल से जल स्रोतों के ताप स्तर में वृद्धि हो जाती है परिणाम स्वरूप यही jal pradushan का कारण बनता है।
5. तेल रिसाव
जल स्रोतों में तेल रिसाव या तेल के मिलने के कारण हुआ प्रदूषण तैलीय जल प्रदूषण कहलाता है। बहुत बार समुद्र में तेल से भरे जहाज में रिसाव होने के कारण आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण हो जाता है जिससे समुद्री जीवधारियों एवं वनस्पतियों की क्षति होती है। औद्योगिक संयंत्रों से नदी एवं अन्य जल स्रोतों में तैलीय पदार्थ मिलकर जल को प्रदूषित कर देते हैं। तेल शोधन के कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट नदियों में मिलकर जल प्रदूषण का कारण बनते हैं। भारत में बिहार के मुंगेर जिले के पास तेल शोधन कारखाने से निकलने वाले अपशिष्ट के कारण वश गंगा नदी में एक बार आग भी लग चुकी है।
6. रेडियोएक्टिव अपशिष्ट से जल प्रदूषण
आधुनिक वैज्ञानिक समय में परमाणुविक प्रयोगों से असंख्य रेडियो एक्टिव कण वायुमंडल में विद्यमान हो जाते हैं जो बाद में धीरे धीरे धरातल पर आकर जल स्रोतों में मिल जाते हैं। यही रेडियो एक्टिव कण जल में मिलकर जल को प्रदूषित एवं विषैला करके जल प्रदूषण का कारण बनते हैं।
जल प्रदूषण को रोकने के उपाय
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जल प्रदूषण की समस्या दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है अब यह समय आ चुका है कि इस समस्या के समाधान के लिए प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान दें अन्यथा इसकी भारी-भरकम कीमत चुकानी पड़ेगी। निम्नलिखित कुछ उपायों के माध्यम से हम जल प्रदूषण को रोकने का प्रयास कर सकते हैं।
1. किसी भी प्रकार के अपशिष्ट को वहि:स्त्राव के माध्यम से जल स्रोतों में मिलने नहीं देना चाहिए।
2. घरों से निकलने वाले अपशिष्ट को संशोधित करने के उपरांत ही जल स्रोतों मैं विसर्जित करना चाहिए।
3. प्रत्येक कल कारखानों में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए कठोर नियम बनाने चाहिए जिससे कि अपशिष्ट को संशोधित करने के उपरांत ही जल स्रोतों में मिलाया जाए।
4. जलाशयों जैसे कि नदी, तालाब इत्यादि में नहाने, कपड़े धोने, पशुओं के नहलाने आदि पर रोक लगानी चाहिए।
5. कृषि कार्य के लिए रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग कम से कम मात्रा में करने के लिए कृषकों को प्रोत्साहित करना चाहिए साथ ही जैविक खेती के लिए उन्हें बढ़ावा देना चाहिए।
6. सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर रोक लगाना चाहिए।
7. जल प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के प्रति लोगों को जागरूक करके जल प्रदूषण रोकने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
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