महात्मा गाँधी का जीवन परिचय | Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay

मोहनदास करमचंद गाँधी (Mohandas Karamchand Gandhi)

एक महान नेता जिन्होंने ऐसी दुनिया की कल्पना की जहाँ हर नागरिक का जीवन गरिमा और समृद्धि से परिपूर्ण हो। 
- नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत 


यूँ ही नहीं सम्पूर्ण विश्व महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) को याद करता है वरन उनका अहिंसावादी मार्ग, सत्याग्रह एवं सादा जीवन उच्च विचार का आदर्श आज भी लोगों को गरिमामयी, सफलतम एवं समृद्ध जीवन जीने के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। गाँधी जी (Gandhi Ji) में मानव समाज के सबसे बड़े विरोधाभासों में सामंजस्य स्थापित करने की अनूठी पहल थी। महात्मा गाँधी समाज के सभी वर्गों में भरोसे के प्रतीक थे। 1917 में गुजरात के अहमदाबाद में जब कपडा मिल में हड़ताल हई और मालिकों एवं श्रमिकों के बीच टकराव बहुत बढ़ गया तो गाँधी जी ने मध्यस्थता करके न्यायसंगत समझौता कराया।

महात्मा गाँधी जीवन परिचय | Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay




पूरा नाम     : मोहनदास करमचंद गाँधी 
जन्म तिथि  : 2 अक्टूबर 1869 
जन्म स्थान : पोरबंदर, गुजरात 
माता          : पुतलीबाई गाँधी
पिता          : करमचंद गाँधी
जीवनसाथी: कस्तूरबा गाँधी 
बच्चे           : हीरालाल, मणिलाल, रामदास, देवदास 
मृत्यु           : 30 जनवरी 1948 
समाधी स्थल: राजघाट, नई दिल्ली
आत्मा कथा : सत्य के साथ मेरे प्रयोग


गाँधी जी की आत्म कथा 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' में गाँधी जी ने बताया है की उनके जीवन पर उनकी माँ के धार्मिक आचरणों का गहरा असर रहा। श्रीमद्भगवतगीता से गाँधी जी का हार्दिक लगाव जीवनपर्यन्त रहा। आजीवन सत्यनिष्ठा का आदर्श गाँधी जी ने राजा हरिश्चंद्र नाटक से  ग्रहण किया।

सितम्बर 1888 में गाँधी जी यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से कानून की पढाई करने एवं बैरिस्टर बनने की लिए लंदन चले गए।  वकालत के कार्य के सिलसिले में वर्ष 1893 में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका गए। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखकर गाँधी जी ने अंग्रेजी साम्राज्य के मध्य अपने देशवासियों के सम्मान के लिए प्रश्न उठाये।


सन 1915 में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आये उन्होंने कांग्रेस दल के प्रमुख भारतीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले के साथ भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अधिवेशनों में भारत के मुख्य मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किये। 

गाँधी जी ने सन 1918 में चम्पारण में अपने प्रथम सत्याग्रह आंदोलन का सफल नेतृत्व किया। चम्पारण बिहार प्रान्त का पश्चिमोत्तर भाग है जिसकी सीमा नेपाल से मिलती है। अंग्रेजों ने यहाँ हजारों भूमिहीन मजदूर एवं गरीब किसानों को खाद्यान्न के बजाय नील और अन्य नकदी फसलों की खेती करने के लिए बाध्य किया था। चम्पारण में नील की खेती करने वाले किसानों पर न केवल अंग्रेजो द्वारा बहुत अत्याचार किया जा रहा था अपितु कुछ बागान मालिकों के द्वारा भी जुल्म ढाये जा रहे थे। सन 1917 में बिहार के राजकुमार शुक्ला के निमंत्रण पर गाँधी जी नील कृषकों का जायजा लेने के लिए वहां गए। किसानों ने अपने सारी समस्याएं गाँधी जी को बताई। किसानों की भीड़ को देखते हुए पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट ने गाँधी जी को जिला छोड़ने का आदेश दिया। लेकिन गाँधी जी (Gandhi Ji) जाने से इनकार कर दिए। इसलिए अगले दिन गाँधी जी को कोर्ट में हाजिर होना पड़ा। महात्मा गाँधी के समर्थन में कोर्ट के बाहर हजारों किसानों की भीड़ जमा हो गयी और नारे लगाए जाने लगे। हालात की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रेट ने बिना जमानत बिना जमानत छोड़ने का आदेश दिया परन्तु गाँधी जी ने कानून के अनुसार सजा की मांग की और फैसला स्थगित कर दिया गया। इस प्रकार गाँधी जी ने अपने प्रथम सत्याग्रह आंदोलन का सफल नेतृत्व किया। 

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