सरकारी स्कूलों की ख़राब गुणवत्ता का ज़िम्मेदार कौन?

सरकारी स्कूलों की ख़राब गुणवत्ता का ज़िम्मेदार कौन?

शिक्षा एक ऐसा महवत्पूर्ण पहलू है जो एक आदर्श समाज की नींव रखता है। किसी ने ख़ूब कहा है "अगर समाज को सुधारना चाहते हो तो शुरुआत खुद से करो", लोग सरकारी स्कूलों की ख़राब गुणवत्ता की बात तो करते हैं लेकिन कभी उसके सुधार के लिए आगे नहीं आते। जी हाँ आपने खूब समझा आज हम इस आर्टिकल में उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों की गुणवत्ता और उसके सुधार के बारे में बात करेंगे। ये इतना जरुरी क्यों है? इसकी शुरुआत करते है कुछ आंकणो के साथ।

जनगड़ना 2011 के अनुसार उत्तर-प्रदेश में भारतवर्ष की लगभग 17 प्रतिशत आबादी निवास करती है और राज्य में कुल शिक्षा का स्तर 65 प्रतिशत है। उत्तर-प्रदेश की लगभग 78 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। 2011 की सामाजिक, आर्थिक, जाति जनगणना के अनुसार 40 प्रतिशत लोग कृषि अथवा कृषि सम्बंधित कार्यों से अपने परिवार का जीवनोपार्जन करते हैं तथा 45.65 प्रतिशत लोग आकस्मिक रोज़गार से अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। सिर्फ 2 प्रतिशत लोग स्थायी रोज़गार का हिस्सा है एवं 1 प्रतिशत लोग स्वरोजग़ार या अन्य कार्यों से अपने घर का ख़र्चा चलाते हैं। इनमे से 72.20 प्रतिशत परिवार की मासिक आय 5 हज़ार से भी कम, एवं 19.81 प्रतिशत परिवार की मासिक आय 5 से 10 हज़ार के मध्य है और केवल 7.9 प्रतिशत परिवार की मासिक आय 10000 या उससे अधिक है। 

अगर स्कूलों में नामांकन की बात करें तो राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन संस्थान नई दिल्ली के प्रकशित रिपोर्ट 2015-16 के अनुसार (कक्षा-1 से कक्षा-8 तक) 3,64,25,633 बच्चे सभी तरह  के स्कूलों में नामांकित हैं इनमें से 45.58 प्रतिशत  सरकारी स्कूलों, 51.82 प्रतिशत गैर-सरकारी स्कूलों तथा 2.6 प्रतिशत असंगठित गैर-सरकारी स्कूलों में नामांकित हैं। बात अगर शिक्षक वितरण की बात करें तो गैर-सरकारी स्कूलों में कुल शिक्षक का केवल 38 प्रतिशत शिक्षक नियुक्त हैं जो कि 1,88,76,867 (51.82%) बच्चों को पढ़ते हैं वहीं अगर सरकारी स्कूलों में देखें तो 51 प्रतिशत शिक्षक 1,66,02,729 (45.58%) बच्चों को पढ़ाते हैं फिर भी अगर शिक्षण गुणवत्ता की बात करें तो सरकारी स्कूल, गैर-सरकारी स्कूलों के आस-पास भी नहीं नज़र आते। ऐसा क्यों है? कभी आपने सोचा है?

शिक्षा गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार कौन?

सरकारी स्कूलों के बिगड़ते हालात का ज़िम्मेदार कोई एक नहीं है, इसके पीछे बच्चों के माता-पिता, शिक्षक, ग्राम प्रधान से लेकर बेसिक शिक्षा अधिकारी और सरकार सभी हैं। अगर प्रशासन आवश्यकता से अधिक गैर-शिक्षण कार्य शिक्षकों को न सौंपे तो शिक्षकों को शिक्षण के लिए अधिक समय मिलेगा।  प्रशासन के बाद की जिम्मेदारी आती शिक्षक की, जिसका मुख्य कार्य है बच्चों को पढ़ाना और उसकी बहुमुखी विकास को दिशा प्रदान करना।  उसके बाद अगला नंबर आता है ग्राम प्रधान जो कि क्षेत्र का मुखिया होने के साथ-साथ स्कूल साफ़-सफ़ाई और संरचनामत्क सुधारों तथा स्कूल के सुचारू रूप से संचालन का भी जिम्मेदार होता है और अंत में  बच्चों के माता-पिता एवं अन्य ग्रामीण वासिओं की ज़वाबदेही सरकारी स्कूल की शिक्षण गुणवत्ता को सुधार सकती है।

who-is-responsible-for-poor-quality-of-government-schools


पिछ्ले एक दशक के बीच नवनियुक्त शिक्षकों ने सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता को लेकर काफ़ी सराहनीय प्रयास किया है लेकिन सरकार और प्रशासन की तरफ़ से अभी भी कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जा रहा, अगर ऐसे चलता रहा तो कुछ ही महीनों में ये नवसृजित शिक्षक भी निराश होकर हथियार डाल देंगे।  हालांकि की समय के साथ-साथ लोगों में शिक्षा के प्रति चेतना जाग रही है लेकिन अभी भी लोगों के मन में पितृसत्तात्मकता गूढ़ रूप से विद्यमान है एक तरफ़ जहाँ लड़के को अच्छे ग़ैर-सरकारी स्कूल भेज रहें हैं वहीं दूसरी तरफ़ लड़कियों को सरकारी स्कूलों में नामांकित कर रहे हैं, यहाँ पर समस्या लोगों की सोच से है। लोगों की सोच ये है की सरकारी स्कूलों में ढंग की पढ़ाई नहीं होती और परिवार के पास इतना संसाधन नही है की दोनों को अच्छे  स्कूल में पढ़ा सकें। सरकारी स्कूलों के प्रति ये सोच हमने खुद ही सृजित की है और इन गूढ़वादी जंजीरों को हमें ख़ुद ही तोड़ना होगा।

अंत में मेरा इस लेख को पढ़ने वाले सभी लोगों से निवेदन है की आप जहाँ भी है हफ़्ते में एक बार पास के सरकारी स्कूल में ज़रूर जाएं (महामारी की परिस्थितियां सामान्य होने के उपरांत), बच्चों और शिक्षकों से बात करें समाज के भावी निर्माणकर्ताओं को अपने अनुभवों से सिंचित करें, नहीं तो जिस तरह से अभी चल रहा है, अगर बच्चे ऐसे ही बिना सीखे पढ़ते रहे तो कुछ ही वर्षों में समाज में एक ऐसे बेरोजग़ारों की फ़ौज तैयार होगी और फिर वो अपने जीवनोपार्जन के लिए अवैध गतिविधियों को अपनायेंगे जिसे फिर कोई पुलिस या सरकार सुधार नहीं पायेगी और फिर आदर्श समाज का सपना सिर्फ़ सपना बनकर रह जायेगा।


लेख़क - संदीप कुमार तिवारी (शोध छात्र)

भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद् ,नई दिल्ली, एवं अर्थशास्त्र विभाग,

श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय कटरा , जम्मू & कश्मीर।

Post a Comment

0 Comments